-स्वास्थ्य विभाग सिविल हस्पताल पानीपत के सहयोग से एक हज़ार छात्र-छात्राओं को खिलाई गई डीवोर्मींग टेबलेट
-रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और झुग्गी-झोपड़ी के बच्चो को भी किया इस अभियान में शामिल
-स्वच्छ पानी और पौष्टिक भोजन हमें हर प्रकार की पेट की बिमारी से बचाता है: डॉ अनुपम अरोड़ा
PANIPAT AAJKAL , 18 सितम्बर.
एसडी पीजी कॉलेज पानीपत में डीवोर्मींग डे (कृमी दिवस) के अवसर पर कॉलेज एनएसएस यूनिट्स और स्वास्थ्य विभाग सिविल हॉस्पिटल पानीपत केसहयोग सेलगभग एक हज़ार छात्र एवं छात्राओं को डीवोर्मींग की एल्बेनडाजोल टेबलेट खिलाई गई । कॉलेज एनएसएस यूनिट के तत्वाधान में आयोजित अभियान में स्वयंसेवकों ने रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर वहां पर रह रहे बच्चों को भी यह टेबलेट वितरित की । कार्यक्रम का विधिवत आरम्भ कॉलेज प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने विद्यार्थियों विशेषकर छात्राओं को प्रेरित करने हेतू स्वयं एक टेबलेट खाकर किया । इस अवसर पर एनएसएस प्रोग्राम ऑफिसर डॉ राकेश गर्ग, डॉ संतोष कुमारी, प्रो मनोज कुमार, स्वयसेवक सौरभ उपस्थित रहे जिन्होनें छात्र-छात्राओं को डीवोर्मींग के फायदों के बारे में विस्तार से बताया और उनके मन में व्याप्त शंकाओं का निवारण किया । केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा चलाये गए इस अभियान का मुख्य उद्देश्य देश के भावी नागरिकों को शारीरिक रूप से और अधिक तंदुरस्त करना और सेहतमंद बनाना है । हर व्यक्ति बीमारियों से दूर रहे इसी उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष एल्बेनडाजोल की टेबलेट मुफ्त वितरित की जाती है । प्राचार्य ने बताया कि जो छात्र-छात्राएं इस दवाई से छूट भी जाएँ तो वह अपने निकटतम स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर इस दवाई को प्राप्त कर खा सकते है ।
डॉ अनुपम अरोड़ा ने कहा कि पेट में कीड़े हो जायें तो यह बहुत ही कष्टदायी होता है । यह समस्या सबसे अधिक बच्चों में होती है परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि बड़ों की आंतों में कीड़े नहीं हो सकते हैं । पेट के कीड़े लगभग 20 प्रकार के होते हैं जो हमारी अंतड़ियों में घाव पैदा कर सकते हैं । इसके कारण रोगी को बेचैनी, पेट में गैस बनना, दिल की धड़कन असामान्य होना, बदहजमी, पेट में दर्द, बुखार जैसी कई प्रकार की समस्यायें हो जाती हैं । रोगी की न सिर्फ खाने में रुचि कम हो जाती है बल्कि उसे चक्कर भी आने शुरू हो सकते हैं । मुख्यतः गंदगी के कारण ही पेट में कीड़े पैदा होते हैं । अशुद्ध और खुला भोजन करने वालों को भी यह समस्या अधिक होती है । केवल डीवोर्मींग से ही इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है । उन्होनें सभी से अनुरोध किया कि वे अपनी जीवन शैली को बदले और घर पर बने भोजन को ही खाए । इसी में हमारा स्वास्थ्य सुरक्षित है । साफ़ एवं स्वच्छ पानी और भोजन हमें हर प्रकार की पेट की बिमारी से बचाता है ।
डॉ राकेश गर्ग एनएसएस प्रोग्राम ऑफिसर ने कहा कि वर्तमान में हर व्यक्ति अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मेहनत करता है जिसके लिए कई बार उसे अपने घर से दूर भी रहना पड़ता है । घर से दूर रहने के कारण उन्हें खाने-पीने की समस्या से जूझना पड़ता है और बाहर का भोजन खाना उनकी मजबूरी हो जाती है । ऐसे में इस बात की आशंकाएं बढ़ जाती है कि उस खाने को बनाने में साफ़-सफाई का ध्यान न रखा गया हो । इसी कारण उनके पेट में कीड़े होने शुरू हो जाते है और यदि इस समस्या का समय रहते इलाज न किया जाए तो यह समस्या बड़ी होकर उभरती है ।
डॉ संतोष कुमारी ने कहा कि इस समस्या से ज्यादातर छोटे बच्चे पीड़ित रहते है क्यूंकि वे बाहर का खाना अधिक पसंद करते है । फ़ास्ट फ़ूड खाने में स्वादिष्ट और दिखने में आकर्षक तो होते है लेकिन इनका दुष्प्रभाव हमारे पेट को झेलना पड़ता है । बाहर मिलने वाले खाने को पूरी साफ़ सफाई से नहीं बनाया जाता है जिस कारण इसमें दूषित कण और बैक्टीरिया इत्यादि पनप जाते है और जो सीधे हमारे पेट में आकर कीड़ो का रूप ले लेते है । फिर बच्चो का प्रतिरक्षा तंत्र भी थोडा कमजोर होता है जिस कारण वो छोटी से छोटी बिमारी से भी लड़ नहीं पाते और अंत में बीमार हो जाते है । सही समय पर की गई डीवोर्मींग ही इसका एक मात्र हल और निदान है ।